DRAG
Space To Space

Nagarjuna – Father of Chemistry, Ayurveda, and Metallurgy, “The Einstein of India”

  • Home
  • Space Science
  • Nagarjuna – Father of Chemistry, Ayurveda, and Metallurgy, “The Einstein of India”

नागार्जुन – रसायन, आयुर्वेद और धातु विज्ञान के जनक, “भारत का आइंस्टीन”

जिस प्रकार आजकल के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम धातु के प्रयोग से अणु शक्ति को प्राप्त कर लिया है। उसी प्रकार प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने भी पारद के ऊपर प्रयोग करके ऐसी विधियाँ निकाली थीं, जिससे ताँबे का सोना बनाना तो संभव था ही, साथ ही मनुष्य अपने भौतिक शरीर को पूर्णतः नहीं तो अधिकाँश में अमर भी बना सकता था। सिद्ध नागार्जुन भारत वर्ष के इसी दौर के एक महान वैज्ञानिक थे।माना जाता है कि नागार्जुन का जन्म 931 ईसवी के आसपास गुजरात के दैहक नामक गांव में हुआ था। नागार्जुन प्राचीन भारत के महान रसायन शास्त्री, धातु विज्ञानी और चिकित्सक थे जिन्होंने रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान और दवाइयां बनाने के क्षेत्र में बहुत ही शोध कार्य किए और कई पुस्तकें लिखी। नागार्जुन एक विद्वान बौद्ध थे और रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उन्हें आचार्य के नाम से जाना जाता था। इन्होंने पारे की भस्म का औषधि के रूप में प्रयोग प्रारंभ किया और मलेरिया का इलाज खोजा। नागार्जुन को “भारत का आइंस्टीन” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने शून्यवाद की अवधारणा विकसित की थी, जो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के समान है। उनकी विशेष रूप से भारतीय विज्ञान, चिकित्सा, रसायनशास्त्र में रुचि और खोज की वजह से उन्हें प्राचीन भारत के रसायनशास्त्र के पितामह के रूप में जाना जाता है। उन्होंने संसार की कायापलट कर देने के लिए “अमृत” और  “पारस” की खोज करने का निश्चय किया और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक बड़ी प्रयोगशाला बनाकर जड़ी-बूटियों द्वारा पारद-सम्बन्धी परीक्षण आरम्भ किए। साथ ही देश के विख्यात “रस वैज्ञानिकों” और साधकों को बुलाकर उनका सहयोग भी प्राप्त किया। अपनी लगन और कठोर साधना के कारण उन्हें शीघ्र ही आश्चर्यजनक सफलता मिली और किसी भी घटिया धातु को सोने के रूप में बदल देना उनके लिए साधारण सी बात हो गई थी। मानवीय देह को अमर बनाने के प्रयत्न में भी वह बहुत कुछ सफल हुए। आज वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि रसायन शास्त्र से जुड़े इन प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में गहन अध्ययन करना चाहिए। 

नागार्जुन के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से

नागार्जुन के जीवन से जुड़े कई रोचक किस्से हैं, जिनके अनुसार नागार्जुन को उनके समय में उच्च स्तर पर एक चमत्कारी विद्वान और वैज्ञानिक माना जाता था। कुछ रोचक किस्से इस प्रकार हैं –

 1. नागार्जुन ने अपनी रसायन विद्या के बल पर धातुओं को सोने में बदलने की विधि खोज निकाली थी। उन्होंने पारे के साथ विभिन्न जड़ी-बूटियों और रसायनों का प्रयोग कर ऐसा योग बनाया जो किसी भी धातु को सोने में परिवर्तित कर सकता था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने यह प्रयोग राजाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए किया था। यही कारण है कि उन्हें भारतीय अल्केमी का जनक कहा जाता है।

2. प्राचीन समय में नागार्जुन के बारे में कुछ लोगों का मानना है कि उनके पास कुछ दैवीय शक्तियां भी थीं। जिनकी मदद से वे धातुओं को सोने में बदल सकते थे और अमृत भी बना सकते थे। नागार्जुन ने कथित रूप से अमृत बनाने की विधि पर शोध किया था। वे चाहते थे कि मनुष्य बिना रोग और मृत्यु के दीर्घकाल तक जीवित रह सके। 

 3. एक किस्सा यह भी कहा जाता है कि एक बार किसी राजा ने नागार्जुन की रसायन विद्या पर शंका जताई। नागार्जुन ने उसे चुनौती दी कि वे एक ऐसी औषधि तैयार करेंगे जिससे अग्नि उन्हें जला नहीं सकेगी। उन्होंने एक औषधीय लेप तैयार किया और अपने शरीर पर लगाया। जब उन्हें अग्नि में बैठाया गया, तो वे जले नहीं और अग्नि से पूर्णतया सुरक्षित बाहर आ गए। यह घटना नागार्जुन की औषधीय और रसायन विद्या की चमत्कारी क्षमता को दर्शाती है।

 4. ऐसा कहा जाता है कि नागार्जुन ने अपने शिष्यों को रसायनशास्त्र की शिक्षा देते समय बड़ी सावधानी बरती। उनका मानना था कि यदि यह विद्या अज्ञानी या लोभी व्यक्ति के हाथ लग जाए, तो समाज का नुकसान हो सकता है।

 5.  एक किस्सा यह भी है कि जब नागार्जुन की अल्केमी विद्या को कुछ लोग जादू-टोना या धोखा समझने लगे, तो उन्हें नगर से निष्कासित कर दिया गया। बाद में जब उन्होंने कई बीमारियों का इलाज खोज कर राजकोष को समृद्ध कर दिखाया, तो उन्हें सम्मानपूर्वक पुनः आमंत्रित किया गया और राजवैद्य घोषित किया गया।

अमरता की खोज

महाराष्ट्र के नागलवाड़ी ग्राम में उनकी प्रयोगशाल होने के प्रमाण मिले हैं। जिसके अनुसार वे अमरता की प्राप्ति की खोज करने में लगे हुए थे। नागार्जुन ने अपनी समस्त शक्ति और समय अमृत की खोज में लगा दिया था। इस कारण वह राज्य-कार्य की उपेक्षा करने लगे और देश में अव्यवस्था उत्पन्न होने लगी। यह देखकर राज्य के हितैषी मन्त्रियों ने सामूहिक रूप से उनके पास जाकर प्रार्थना की कि उनकी विज्ञान रुचि के कारण राज्य की क्षति हो रही है, प्रादेशिक सामन्त स्वेच्छाचारी बनकर कर देना बन्द कर रहे हैं, उपद्रव बढ़ने लगे हैं और विदेशियों के आक्रमण का भय उत्पन्न हो गया है। मन्त्रियों की बात सुनकर नागार्जुन ने कहा – “मित्रो! तुम्हारा यह कहना ठीक है कि मैं अमृत की खोज में लगा हुआ हूँ और इससे राज्य कार्य की उपेक्षा हो रही है। पर शीघ्र ही मैं मृत्यु के भय को हटाने में समर्थ हो जाऊँगा। भगवान धन्वन्तरि की कृपा से अमर बनाने वाली समस्त औषधियाँ मिल गई हैं और अब केवल उचित मात्रा में विधिपूर्वक उनका योग करना ही शेष रह गया है। अपने पिता की महान सफलता को देखकर उनका बेटा राजकुमार बड़ा प्रभावित हुआ, साथ ही उसे यह भय भी हुआ कि कहीं इस कार्य की समाप्ति हो जाने पर नागार्जुन फिर राज्य-सत्ता को लेने का विचार न करे। राजकुमार ने जब अपने इस भय की चर्चा अपने घनिष्ठ मित्रों से की तो उनमें कुछ ने जो गुप्त रूप से नागार्जुन के विरोधी थे। उन्होंने राजकुमार को इस सम्बन्ध में भड़काया और षड्यन्त्र रचकर ऐसी योजना बनाई जिससे नागार्जुन अपनी प्रयोगशाला सहित विनष्ट हो गया। इस प्रकार नागार्जुन का ‘अमृत’ बनाने का स्वप्न साकार न हो सका।

रसायन और धातु विज्ञान में योगदान

भारत के रसायन विज्ञान और धातु विज्ञान का इतिहास लगभग 3000 साल पुराना है। नागार्जुन ने 12 साल की उम्र से ही रसायन विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य शुरू कर दिया था। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें ‘रस रत्नाकर‘ और ‘रसेन्द्र मंगल‘ बहुत प्रसिद्ध हैं। नागार्जुन को भारत का पहला महान रसायन शास्त्री माना जाता है, क्योंकि उन्होंने धातु-विज्ञान, पारे के उपयोग, और औषधी निर्माण पर गहन शोध किया। वे रसायन और औषधि निर्माण में रसविद्या के सिद्धांतों के प्रवर्तक माने जाते हैं।

प्रमुख ग्रंथ

नागार्जुन ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जो इस प्रकार हैं –

आरोग्य मंजरी – यह चिकित्सा विज्ञान पर आधारित है।

योगशतक – यह औषध निर्माण और योग-संयोजन पर आधारित है।

मूलमध्यमककारिका – यह बौद्ध शून्यवाद पर रचित दर्शन ग्रंथ है।

रस रत्नाकर ग्रंथ

रस रत्नाकर – यह उनका रसायनशास्त्र पर एक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें धातु विज्ञान, रसायन निर्माण और औषधियों का विवरण दिया गया है। रस रत्नाकर में रस (पारे के यौगिक) बनाने के प्रयोग दिए गये हैं। इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये गए हैं। पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने पशुओं, वनस्पति तत्वों, अम्ल और खनिजों का भी इस्तेमाल किया। हीरे, धातु और मोती घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया। उसमें खट्टा दलिया, पौधे और फलों के रस थे। रस रत्नाकर में उन्होंने पेड़-पौधों से अम्ल और क्षार प्राप्त करने की कई विधियां बताई है जिनका उपयोग आज भी किया जाता है। इसी पुस्तक में उन्होंने यह भी बताया कि पारे को कैसे शुद्ध किया जाए और उसके योगिक कैसे बनाए जाएं। नागार्जुन ने रस रत्नकर में ही वर्णन दिया है कि दूसरी धातुएं सोने में कैसे बदल सकती है, अगर वो सोने में ना भी बदले तो उनके ऊपर आई पीली चमक सोने जैसी ही होगी। उन्होंने हिंगुल और टिन जैसे खनिज़ों से पारे जैसी वस्तु बनाने का तरीका भी बताया।

धातु से सोना बनाने वाले प्रयोगधर्मी

नागार्जुन का नाम सबसे अधिक सोना बनाने की विधि के लिए जाना जाता है। नागार्जुन ने जो साधारण धातुओं को सोने में परिवर्तित करने की विधि निकाली उसके भी कुछ चिह्न वर्तमान समय के रसायनज्ञ में भी पाये जाते हैं। इस प्रकार नागार्जुन ने अपने आविष्कारों द्वारा लोक-कल्याण का एक ऐसा मार्ग खोला जिस पर चल कर ज्ञान-विज्ञान के अभ्यासी उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त कर सकते हैं।

चिकित्सा शास्त्र में अमूल्य योगदान

 नागार्जुन ने आयुर्वेद में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई औषधीय वनस्पतियों, खनिजों और रसायनों से दवाएँ बनाने के तरीकों का वर्णन किया। नागार्जुन एक बहुत अच्छे चिकित्सक भी थे, उन्होंने कई बड़े रोगों की औषधियाँ तैयार की। उन्होंने सुश्रुत संहिता की तरह ही उत्तर तंत्र नाम का ग्रंथ लिखा। इसमें कई बीमारियों के उपचार और उनके लिए उपयोग होने वाली दवाईयां बनाने की विधियां लिखी हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने आयुर्वेद पर आरोग्य मंजरी नाम का ग्रंथ भी लिखा। नागार्जुन ने पारे पर बहुत सारे शोध कार्य किए और बताया कि इससे बड़े – बड़े रोगों को दूर करने के लिए दवाइयां कैसे बनाई जाएं। अपनी एक पुस्तक में नागार्जुन ने लिखा है कि, पारे और गन्धक, दोनो तत्वों के जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न होता है, वो उम्र बढ़ाने के लिए काफ़ी फायदेमंद है। उसे उन्होंने ‘रस सिन्दूर’ नाम दिया। नागार्जुन की पुस्तकों से पता चलता है कि वो उस समय खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर करके उन्हें शुद्ध करते थे ताकि सेहत वर्धक दवाइयां बनाई जा सकें। उनके प्रयत्नों  द्वारा भारतीय चिकित्सा-शास्त्र की बड़ी प्रगति हुई। विभिन्न धातुओं की भस्मों द्वारा कठिन से कठिन रोग अधिक शीघ्रता से दूर किये जाने लगे। जो लोग पारद की भस्म बनाने में सफल हुए, वे उसके प्रयोग से अमर नहीं तो दीर्घ-जीवन की प्राप्ति में समर्थ हो सके।

नागार्जुन का शून्यवाद

नागार्जुन ने “शून्यवाद” का प्रतिपादन किया, उनकी प्रसिद्ध रचना “मूलमध्यमककारिका” में उन्होंने शून्यता के सिद्धांत का विस्तार से वर्णन किया है। नागार्जुन की दृष्टि में मूल तत्व शून्य के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। शून्यवाद की सिद्धि के लिए नागार्जुन ने विध्वंसात्मक तर्क का उपयोग किया। वह तर्क, जिसके सहारे पदार्थ का विश्लेषण करते करते वह केवल शून्य रूप में टिक जाता है। इस तर्क के बल पर द्रव्य, गति जाति, काल, संसर्ग, आत्मा, आदि तत्वों का बड़ा ही गंभीर, मार्मिक तथा मौलिक विवेचन करने का श्रेय नागार्जुन को है। 

मृत्यु

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक नागार्जुन की मृत्यु के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ मान्यताओं के अनुसार नागार्जुन 300 वर्ष तक जीवित रहे। उनकी महान् वैज्ञानिक खोजों का प्रमाण उनके द्बवारा नाए “रसोद्वार तन्त्र” नामक ग्रन्थ में मिलता है, जिसे आज भी आयुर्वेद जगत् में अद्वितीय माना जाता है। परिस्थितियों वश नागार्जुन को अपने कार्य को पूर्ण करने का अवसर नहीं मिल सका और दस वर्ष तक ढाँक का राज्याधिकारी रहने के बाद ही उसका अंत हो गया।

विरासत

नागार्जुन को भारतीय प्राचीन वैज्ञानिकों में प्रमुख रूप से जाना जाता है। उनके सिद्धांत और खोजें कई वैज्ञानिकों और आयुर्वेदाचार्यों के लिए मार्गदर्शक बनीं। भारतीय चिकित्सा और रसशास्त्र में उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। उनकी वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्रयोगधर्मिता और गहन अध्ययन ने उन्हें प्राचीन भारत का एक अमर वैज्ञानिक बना दिया। भारतीय रसायन शास्त्र के साक्ष्य नागार्जुन द्वारा रचित ग्रंथों में आज भी मिलते हैं। जिस तरह वेदों और महाकाव्यों की परंपरा हमारे देश में आज तक जीवित है इसी तरह विज्ञान के अद्भुत प्रयोग भी इन ग्रंथों के रूप में सुरक्षित हैं। समय समय पर विद्वान इन ग्रंथों की पुनर्स्थापना करते रहे हैं। नागार्जुन भारत के प्राचीन रसायन शास्त्र का सबसे ज्ञात चेहरा है, जिन्होंने अपने समय में इसी ज्ञान को परिष्कृत कर इन महान ग्रंथों की रचना की।

सुशी सक्सेना 

#3June#science#spacetospace 

Read this also:- A unique book Minds That shaped the world

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *